Monday, July 10, 2023

इतिहास के स्त्रोत अंत साक्ष्य

डॉ रामकुमार वर्मा ने इतिहास के स्त्रोत को दो भागों में विभक्त किया है –

अंतःसाक्ष्य- आतंरिक स्त्रोत अथार्त (जीवनी) रामचरितमानस, कामायनी

बाह्य स्त्रोत- बाहरी स्त्रोत अथार्त किसी का टीका लिखना, आलोचनात्मक बाहरी सोच है। ‘अंतःसाक्ष्य’ को सबसे प्रमाणिक माना गया है।

दो सौ बावन वैष्णव की वार्ता और चौरासी वैष्णवन की वार्ता ये दोनों गद्य रचनाएँ हैं। इस दोनों ग्रंथों के रचनाकार- गोकुलनाथ हैं। इनका रचनाकाल वि०स० 1625 है। इसे इसवीं बनाने के लिए 57 घटा देने पर 1568 ई० होगा। ये दोनों रचनाएँ गद्य हैं। इसमें पुष्टिमार्ग में दिक्षित भक्त कवियों का परिचय दिया गया है। इसमें सिर्फ पुष्टिमार्ग के भक्त कवियों का वर्णन मिलता है।

इतिहास के स्त्रोत के रूप में दूसरी रचना ‘भक्तमाल’ है। भक्तमाल के रचनाकार नाभादास थे। नाभादास का एक अन्य नाम नारायणदास भी था। रचनाकाल वि०स० 1642-57= 1585 ई० था। इसमें 316 छप्पय छंदों में 200 भक्त कवियों का जीवन परिचय दिया गया है। इसमें 116 रामभक्त कवि और 84 कृष्णभक्त कवि हैं।

इसके दो खण्ड हैं:

  • पहला खण्ड में 84 कृष्णभक्त कवियों का परिचय है।
  • दूसरा खण्ड में 116 कृष्णभक्त कवियों का परिचय है। इस रचना में नाभादास ने तुलसीदास को सबसे बड़ा भक्त कवि माना है।

‘मूलगोसाई चरित’ इसके रचनाकार वेनिमाधाव दास थे। वेनिमाधाव दास तुलसीदास के शिष्य थे। रचनाकाल विंसं 1687-57=1630 ई०। इस रचना में दोहा, चौपाई, त्रोटक छंदों में तुलसी का जीवन परिचय दिया गया है इसमें तुलसी का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन मिलता है इसकी भाषा अवधी है इसी रचना के आधार पर अमृतलाल नागर ने तुली का जीवनी ‘मानस के हंस’ लिखा।

‘भक्तनामावाली’ इसके रचनाकार ध्रुवदास थे। इसका रचना काल विंस० 1698-57=1641 ई० है। यह पद्य रचना है। इसमें 116 भक्त कवियों का परिचय है। इसमें अंतिम नाम नाभादास का है। रचना की भाषा अवधी है।

‘कालिदास हजारा’ इसके रचनाकार कालिदास त्रिवेदी हैं। रचनाकाल वि०सं० 1775-57 =1715 ई० है। इसमें 212 भक्त कवियों के एक हजार पदों का संकलन है। इसी रचना के आधार पर शिवसिंह सेंगर ने ‘शिवसिंह सरोज’ की रचना की थी।

‘काव्यनिर्णय’ यह एक नीति ग्रंथ है। इसके रचनाकार भिखारीदास हैं। रचनाकाल वि० सं० 1782-57=1725 ई० है। यह एक नीति ग्रंथ है किन्तु कुछ इतिहास विषयक जानकारी भी इसमें मिलती है। इसलिए इसे इतिहास के स्त्रोत में शामिल किया गया है।

‘कविनामावली’ इसके रचनाकार सूदन हैं। रचनाकाल वि०सं० 1810-57=1753 ई० है। हैइस रचना में 10 कवित्त छंदों में 10 कवियों का परिचय दिया हुआ है।

‘राग सागरोदभव राग’ इसके रचनाकार- कृष्णानंद हैं।  रचनाकाल- वि सं 1900 है। इस रचना में सौ से अधिक कृष्ण भक्त कवियों का परिचय दिया गया है। साथ ही उनके रचनाओं की समीक्षा भी की गई है।

‘श्रृंगार संग्रह’ रचनाकार- सरदार कवि हैं। रचनाकाल- वि०सं० 1904 है। इस रचना में 125 से अधिक रचनाकारों का परिचय है। उनकी रचनाओं में उदाहरण और काव्यांगों (रस, छंद, अलंकार शब्द शक्ति आदि) की विवेचना भी विवेचना है।

‘कवि रत्नमाला’ रचनाकार- मुंशी देवी प्रसाद हैं। रचनाकाल वि०सं० 1968 है। इसमें राजस्थान के 108 रचनाकारों का परिचय दिया गया है। इसमें अनेक कवित्त, सवैया, छंदों का संग्रह है। इस रचना के दो भाग हैं।

‘गोरखनाथ एण्ड दी कनफटा योगीज’ रचनाकार- ब्रिग्स, रचनाकाल- वि०सं० 1955 है। इसमें गोरखनाथ और नाथ सम्प्रदाय के धार्मिक सिद्धांतों का वर्णन है।

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