इतिहास लेखन की प्रमुख पद्धतियाँ निम्नलिखित हैं :
वर्णानुक्रम पद्धति: वह पद्धति जिसमें रचनाकारों का परिचय वर्णमाला के वर्णों के अनुक्रम से दिया जाता है। उसे वर्णानुक्रम पद्धति कहते हैं। यह इतिहास लेखन की सबसे प्राचीन पद्धति है। यह अमनोवैज्ञानिक पद्धति है। ‘गार्सा द तासी ने ‘इस्तावार द ला लितरेत्युवर एंदुई ऐदुस्तानी’ तथा ठाकुर शिवसिंह सेंगर ने ‘शिवसिंह सरोज’ में इसी पद्धति का प्रयोग किया था।
कालानुक्रम पद्धति: सबसे अधिक इतिहास इसी पद्धति में लिखा गया। वह पद्धति जिसमें रचनाकारों का परिचय उनके जन्मकाल के अनुसार यानी उनके युग के अनुसार दिया जाता है। उसे कालानुक्रम पद्धति कहते हैं। यह इतिहास लेखन की सबसे लोकप्रिय और प्रचलित पद्धति है। इस पद्धति का सबसे पहले प्रयोग जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने ‘द मॉडन वर्नाक्युलर लिटरेचर ऑफ हिन्दुस्तान’ नामक इतिहास ग्रंथ में किया था। यह ग्रंथ अंग्रेजी में लिखा गया था।
वैज्ञानिक पद्धति: यह इतिहास लेखन की वह पद्धति है, जिसमे शास्त्रीय मान्यताओं, भाषा- विज्ञान आदि के सिधान्तों के आधार पर रचनाओं का मूल्यांकन किया जाता है। उसे वैज्ञानिक पद्धति कहते है। हिन्दी में इस पद्धति का प्रयोग सबसे पहले डॉ गणपति चंद्र गुप्त ने ‘हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास’ में किया था।
आलोचनात्मक पद्धति: वह पद्धति जिसके अंतर्गत रचनाकारों के परिचय से अधिक उनकी रचनाओं के गुण और दोष बताने पर बल दिया जाता है। उसे आलोचनात्मक पद्धति कहते हैं। डॉ रामकुमार वर्मा ने सबसे पहले इस पद्धति का प्रयोग ‘हिन्दी साहित्य के आलोचनात्मक इतिहास’ में किया था। यह 1938 ई० में लिखा गया था। यह ग्रंथ अभी तक अधूरा है।
समाजशास्त्रीय पद्धति: इतिहास लेखन की वह पद्धति जिसमे रचनाकारों का मूल्यांकन उनके द्वारा समाज को प्रभावित करने के आधार पर किया जाता है। उसे समाजशास्त्रीय पद्धति कहते है। आचार्य हजारी प्रसाद दिवेदी जी ने अपने तीनों इतिहास ग्रंथों में इसी पद्धति का प्रयोग किया है। ‘हिन्दी साहित्य की भूमिका’ (1940), ‘हिन्दी साहित्य का उद्भव और विकास’ (1952), हिन्दी साहित्य का आदिकाल (1953)।
विधेयवादी पद्धति: यह इतिहास लेखन की नवीनतम और सर्वश्रेष्ठ पद्धति है। जिस पद्धति में रचनाकार के जाति, वातावरण, क्षण, युग विशेष की प्रवृति, भाषा का विकास क्रम, शास्त्रीय मान्यताओं, रचनाकार को समाज की देन आदि सभी घटनाओं पर मूल्यांकन किया जाता है। उसे विधेयवादी पद्धति कहते हैं। विश्व में सबसे पहले इस पद्धति का प्रयोग ‘तेन’ ने किया था। तेन इस पद्धति के ‘जन्मदाता’ माने जाते हैं। हिन्दी में इस पद्धति का प्रयोग सबसे पहले आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने किया। दोहरा नाम करण इसी पद्धति की विशेषता है। इसी कारण उनके इतिहास ग्रंथ को सच्चे अर्थों में हिन्दी साहित्य का प्रथम इतिहास माना जाता है।
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