Monday, July 10, 2023

पृथ्वी राज रासो....

  • रचनाकार- चंदबरदाई
  • रचनाकाल 1193 ई०
  • चंदबरदाई का जन्म 1668 ई० लाहौर में भाट जाति के ‘जगाता’ नामक गोत्र में हुआ था। ऐसा माना जाता है कि पृथ्वीराज चौहान तथा चंदबरदाई के जन्म और निधन की तिथियाँ एक सामान है। इस संदर्भ में पृथ्वीराज रासो की निम्नलिखित पंक्ति प्रमाण प्रस्तुत है। ‘एक थल जन्म एक थल मरण’
  • इसमें 69 सर्ग है। (यहाँ ‘सर्ग’ का ‘समय’ नाम दिया गया है) इसमें 61 सर्ग चंदरबरदाई ने लिखा था। 8 सर्ग जल्हण ने लिखा। इसके प्रमाण स्वरुप पृथ्वीराज रासो की पंक्तियाँ निम्नलिखित है। ‘पुस्तक जल्हण हथ दे चले गजनी नृप काज।’
  • इस पुस्तक के बारे में सबसे पहले ‘कर्नल जेम्स टॉड’ ने ‘द एनाल्स एंड एंटीक्विटीज ऑफ राजस्थान’ में 1829 ई में जानकारी दिया था।

वर्तमान में पृथ्वीराज रासो के चार संस्करण उपलब्ध हैं :

  • वृहद रूपांतरण: इसमें 16306 छंद और 69 सर्ग (समय) है।
  • मध्यम रूपांतरण: इसमें 7000 छंद है।
  • लघू रूपांतरण: इसमें 3500 छंद और 19 सर्ग है।
  • लघुतम रूपांतरण: 1300 छंद है।
  • डॉ दसरथ शर्मा ने इस लघुत्तम रूपांतरण को मूल पृथ्वीराज रासो माना है। पृथ्वीराज रासो का नायक पृथ्वीराज चौहान हैं। ये अजमेर के चौहान वंश के शासक थे। ये धीरोदात्त श्रेणी के नायक थे।
  • इनकी नायिका संयोगिता थी जो ‘मुग्धा श्रेणी’ की नायिका थी।
  • इसका सबसे बड़ा सर्ग या समय- कंवज्ज युद्ध और सबसे छोटा सर्ग या समय- पद्मावती सर्ग था।
  • इसकी भाषा के संदर्भ में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने लिखा है कि पृथ्वीराज रासो में युद्धों का चित्रण डिंगल तथा श्रृंगारिक वर्णन एवं प्रकृति चित्रण में पिंगल शैली का प्रयोग किया गया है। अतः इसकी भाषा पिंगल ही माननी चाहिए।
  • पृथ्वीराज रासो में 68 तरह के छंदों का प्रयोग हुआ है। इसमें छप्पय, त्रोटक, वीर त्रोटक, चौपाई, दोहा छंदों की प्रमुखता है। छप्पय चंदरबरदाई का प्रिय छंद था।
  • डॉ नामवर सिंह ने चंदरबरदाई को छप्पय छंद का राजा कहा है।
  • आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने छंद विविधता के कारण पृथ्वीराज रासो को छंदों का ‘अजायबघर’ कहा है।
  • पृथ्वीराज के काव्य सौंदर्य पर रीझकर कर्नल जेम्स टॉड ने इसके पदों को अंग्रेजी में अनुवाद किया तथा ‘द रॉयल एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल’ से इसका प्रकाशन आरम्भ करवाया। इसी बीच डॉक्टर बूलर को कश्मीर के जयानक कवि के द्वारा रचित ‘पृथ्वीराज विजय’ नामक ‘संस्कृत नाटक’ मिली जिसमे संयोंगिता हरण का चित्रण नहीं था। इस आधार पर 1875 ई० में डॉक्टर बूलर ने इसे अप्रमाणित घोषित कर इसका प्रकाशन रुकवा दिया।
  • डॉक्टर बूलर के बाद पृथ्वीराज रासो को लेकर विद्वान तीन भागों में बंट गए:

अप्रमाणिक मानने वाले विद्वान: गौरीशंकर हीरानंद ओझा, मुरारी दान, मुंशी देवीप्रसाद, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, बूलर और मोतीलाल मेनारिया।

अर्द्धप्रमाणिक मानने वाले विद्वान: अगरचंद नहाटा, मुनिमिन विजय, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, सुनीति कुमार चटर्जी।

प्रमाणिक मानने वाले विद्वान: मिश्रबंधु, कर्नल जेम्स टॉड, गुलाबराय, अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔंध’, श्यामसुंदर दास।

पृथ्वीराज रासो के विशेष तथ्य:

  • आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की मान्यता है कि मूल पृथ्वीराज रासो शुक-शुकी संवाद में लिखा गया था। उनके अनुसार पृथ्वीराज रासो के जिन अंशों में शुक-शुकी संवाद नहीं मिलता है वे अंश अप्रमाणिक है। इसलिए उन्होंने इसे अर्द्धप्रामाणिक माना है।
  • इतिहास के तिथियों और पृथ्वीराज रासो की तिथियों में अस्सी नब्बे (80 90) वर्षों का अंतर है।
  • इस समस्या के समाधान के लिए मोहन लाल विष्णु लाल पांड्या ने ‘अनंत संवत्, की कल्पना की। उनकी मान्यता थी कि पृथ्वीराज रासो में दी गई तिथियाँ विक्रमी संवत् में नहीं होकर ‘अनंत संवत्’ में है। अगर अनंत संवत् की दृष्टि से इसकी गणना किया जाए तो इसमें हुई तिथियाँ इतिहास से मेल खाती हैं।
  • नरोत्तम स्वामी ने पृथ्वीराज रासो को ‘मुक्तक काव्य’ माना है।
  • डॉ नगेन्द्र ने पृथ्वीराज रासो को ‘स्वाभाविक विकासशील महाकाव्य’ माना है।
  • डॉ दशरथ शर्मा ने पृथ्वीराज रासो को ‘वृहद महाभारत’ कहा है।
  • डॉ श्यामसुंदर दास और उदयनारायण तिवारी ने पृथ्वीराज रासो को ‘विशाल वीर काव्य’ माना है।

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