इतिहास शब्द की व्युत्पति संस्कृत भाषा के तीन शब्दों से (इति+ह+आस) हुआ है। ‘इति’ का अर्थ है ‘जैसा हुआ वैसा ही’ ‘ह’ का अर्थ है, ‘सत्य या सचमुच’ तथा ‘आस’ का अर्थ है, ‘निश्चित घटित होना’। अथार्त जो घटनाएँ अतीत काल में निश्चित रूप से घटी है, वही इतिहास है।’
इतिहास का अर्थ- इतिहास दो शब्दों के मेल से बना है इति+हास जिसका अर्थ होता है,“ऐसा ही हुआ” अथार्त इतिहास शब्द का अर्थ है। अतीत के घटित घटनाओं का क्रमबद्ध व्युरो।
इतिहास की परिभाषा- “इतिहास सामाजिक जीवन की वह शाखा है, जिसके अंतर्गत अतीत काल की घटनाओं या उससे संबंध रखने वाले व्यक्तियों का काल क्रमानुसार अध्ययन किया जाना।
इतिहास की परिभाषा विद्वानों के अनुसार:
‘इतिहास (history)’ शब्द का प्रयोग ‘हेरोडोटस’ ने अपनी पहली पुस्तक ‘हिस्टोरिका’ (historical) में किया था। हेरोडोटस को इतिहास का ‘जनक’ माना जाता है।
हेरोडोटस के शब्दों में- “सत्य घटनाओं का क्रमबद्ध अध्ययन इतिहास है।” हेरोडोटस की पुस्तक का नाम ‘हिस्टोरिका’ है।
भारत में इतिहास के ‘जनक’ महर्षि वेदव्यास को माना जाता है। उनके द्वारा रचित ‘महाभारत’ भारत के इतिहास की प्राचीनतम पुस्तक मानी जाती है।
महर्षि वेदव्यास ने इतिहास की परिभाषा देते हुए कहा है-
“धर्मार्थ काममोक्षेसु उपदेश समन्वितमˎ। सत्याख्यान इति इतिहासमुच्ययते।।”
अथार्त धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के उपदेश से युक्त सत्य आख्यान (वर्णन) ही इतिहास कहलाता है।
कार्लायल / कार्लाइल के अनुसार- “इतिहास एक ऐसा दर्शन है जो दृष्टान्तों (उदाहरण) के माध्यम से शिक्षा देता है।”
चार्ल्स डार्विन – ये विज्ञान (science) से संबंधित थे। इन्होने इतिहास की परिभाषा विकासवादी दृष्टिकोण के अनुसार देते हुए कहा है- “सृष्टि का बाह्य विकास उसके आतंरिक विकास का प्रतिबिंब है। इस आतंरिक विकास की प्रक्रिया को खोजने का नाम ही इतिहास है।”
हीगल के अनुसार- “इतिहास केवल घटनाओं का संकलन मात्र नहीं है, अपितु घटनाओं के पीछे कार्य-करण की श्रृंखला विद्यमान होती है इसी कार्य-कारण श्रृंखला का खोजने का नाम इतिहास है।”
डॉ रामस्वरूप चतुर्वेदी के अनुसार – “कवि के कार्यो को विकास प्रक्रिया में न्यायोचित दिखाना ही इतिहास है।” (‘हिन्दी साहित्य और संवेदना का विकास’ डॉ रामस्वरूप चतुर्वेदी)
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार- “प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चित्तवृतियों का संचित प्रतिबिम्ब होता है। यह निश्चित है कि जनता की चित्तवृति में परिवर्तन के साथ-साथ साहित्य के स्वरूप में भी परिवर्तन होता चला जाता है। आदि से अंत तक इन्ही चित्तवृतियों की परम्परा को परखते हुए साहित्य की परम्परा के साथ उनका सामंजस्य दिखाना ही साहित्य का इतिहास कहलाता है।”
डॉ नागेन्द्र के अनुसार- “साहित्य का इतिहास बदलती हुई अभिरुचियों और संवेदनाओं का इतिहास है। जिनका सीधा संबंध आर्थिक और विकाशात्मक चिंतन से है।”
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