Tuesday, September 27, 2016

अशिष्टता ही अनैतिकता का कारण है I


सवर्प्रथम हमें यह स्पष्ट करना पड़ेगा कि कभी - कभी अशिष्टता और असभ्यता का प्रयोग समान अर्थों में करते है।असभ्य होना,अशिष्ट होना दोनों अलग है।कोई असभ्य हो सकता है,ज्ञान तथा जानकारी के अभाव में परन्तु अशिष्टता उच्च्छृंखल मन की वृति है।प्रत्येक मनुष्य जानता है कि उचित क्या है,अनुचित क्या है, सही क्या गलत क्या है ? सभ्य समाज की आधारशिला उसके संस्कार और शील के बुनियाद पर टिकी होती है। आज की भागदौड़ भरी जदगी में हर व्यक्ति जिस तरह सारे नैतिक मूल्यों से दूर होता जा रहा है, उससे वह भारतीय संस्कृति व सभ्यता को भूलता जा रहा है। शिष्टाचार जो बच्चे को जन्म के बाद सिखाया जाता है, जिससे उसे यह पता चलता है कि वह किससे कैसा व्यवहार करे, लेकिन आधुनिक युग में मनुष्य भौतिक साधनों के ज्यादा उपयोग से अपने सारे नैतिक मूल्यों को पीछे छोड़ते हुए अशिष्टता को अपना रहा है। समाज में अशांति फैल रही है। हम समाज में अपने संबंधियों व साथियों से दूर होते जा रहे हैं। हम कोई फिल्म या धारावाहिक देखते हैं तो पल भर तो हम उसमें दिखाए गए नैतिक चीजों को देखकर उसे जीवन में उतारने की कोशिश करते हैं, लेकिन थोड़ी देर बाद हमें यह शिष्टाचार या नैतिक मूल्य उबाऊ से लगने लगते हैं। जिस तरह हम उस फिल्म या धारावाहिक में दिखाए गए पाश्चात्य संस्कृति की ओर आकर्षित होते हैं। उससे हमारी नैतिकता खोती जाती है। शिष्टाचार के अंतर्गत हमारा सामने वाले व्यक्ति के प्रति व्यवहार उसका सम्मान, सहायता आदि आते हैं जो हमारे दिल में मानवता को जगाए रहते हैं।
वर्तमान परिवेश के तेज भागती दुनिया में हम अपना शिष्टाचार भूलते जा रहे हैं। अशिष्टता ही अनैतिकता का कारण है। इस बात को समझना होगा। हम इसको समझ लेंगे तो जीवन के हर मोड़ पर नैतिक रूप से खड़े हो सकेंगे। आधुनिक दौर में हम पूरी तरह से फार्मल होते जा रहे हैं। शिक्षण संस्थाओं में बच्चों को बताया जाना चाहिए कि हमारे जीवन में शिष्टाचार का क्या महत्व है। यह बताना होगा कि अशिष्टता ही अनैतिकता का कारण है। पहले के दौर से लेकर अब तक के दौर तक तमाम बदलाव हुए हैं। इस दौर में आदमी का व्यवहार भी बदला है। बदले व्यवहार के बीच शिष्टाचार को बनाए रखना बेहद जरूरी है। जहां हम अपना शिष्टाचार भूले तो अनैतिकता के दायरे में आ जाएंगे और नैतिक मूल्य के अभाव से भरा जीवन किस काम का। इसीलिए शिक्षा के साथ शिष्टाचार का समावेश जरूरी है। जिस प्रकार जीवन में नैतिकता व शिष्टाचार का समावेश होना चाहिए ठीक उसी प्रकार जब हम सोशल मीडिया पर हों तो शिष्टाचार व अपना नैतिक दायित्व न भूलें। मोबाइल पर कोई भी संदेश छोड़ें तो उसमें शिष्टाचार का जरूर ध्यान रखें। विज्ञान के इस प्रयोग का सकारात्मक प्रयोग करें। बच्चों को बताया कि जब किसी भी संचार माध्यम का उपयोग बात करने या फिर संदेश देने के लिए करें तो पहले से ही सजग रहें कि कहीं हम अपने मानवीय व्यवहार व शिष्टाचार का समावेश न भूल जाएं। क्योंकि एक क्लिक पर ही आपका मैसेज दूसर के पास होगा। तब आप कुछ नहीं कर सकते। हम आज संचार माध्यमों के जरिये एक दूसरे से आनलाइन हैं तो इसका भान तो रहना ही चाहिए कि हमारा शिष्टाचार भी आनलाइन हो। बाल्यावस्था में ही चूंकि यह हमारी जरुरत बन कर खड़ा है तो हम सभी को इसके प्रयोग को लेकर पूरी तरह से सजग रहने की जरूरत है। हम डिजिटल युग में हैं तो हमारा शिष्टाचार व संस्कार भी डिजिटल होना चाहिए। किसी भी माध्यम के प्रयोग का मायने यह रखता है कि हम किस प्रकार उसका उपयोग कर रहे हैं।  आज के परिवेश में शिष्टाचार का अभाव हमें अपने नैतिक मूल्यों व परिधियों से दूर ले जा रहा है। इसको रोकना होगा। जहां हम अपने शिष्टाचार को भूले नैतिकता का पूरी तरह से अभाव हो जाएगा। बातचीत हो या सामान्य व्यवहार हमें शिष्ट होना होगा क्योंकि जैसे ही अशिष्टता आई तो अनैतिकता का जन्म हो जाएगा। जब हम अनैतिक होंगे तो समाज को भी इसी से भरेंगे। समाज व्यक्ति से बनता है। इसलिए व्यक्ति का शिष्टाचार समाज को शिष्ट बनाता है, इसको समझने की जरूरत है।समाज में अनैतिकता का कोई स्थान नहीं है। शिष्टाचार के बिना मानव जीवन पशु के समान है। स्नेह व आदर का भाव बनाएं रखने के लिए बच्चों को संस्कारयुक्त वातावरण देने की आवश्यकता है। विद्यालय में संस्कारित शिक्षा के साथ घर में भी संस्कारयुक्त माहौल बनाएं रखना होगा। बढ़ते बच्चों में समय-समय पर नैतिक कर्तव्यों का बोध कराने के लिए सजगता से कार्य करने की जरूरत है। आज छोटी सी उम्र आवश्यकता से अधिक अर्जित करने जो उनके लिए उचित नहीं है। इसकी प्रवृति संस्कार से विमुख कर रही है।बच्चों का चरित्र निर्माण शिक्षकों के द्वारा ही होता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा में शिक्षक की भूमिका का उल्लेख किया है। वह कहते थे कि शिक्षा का सही उद्देश्य चरित्र निर्माण होना चाहिए। शिक्षक आदर के योग्य होते है। उन्हें छात्रों के मानसिक एवं चारित्रिक विकास पर ध्यान देना चाहिए। आज नैतिक मूल्यों के अभाव में परिवार टूट रहे है। अपने स्वयं के बच्चे पत्नी के अलावा अन्य सदस्यों पर ध्यान नही देते है। पहले संयुक्त परिवार में सभी परिवार के सदस्य इकट्ठे रहते थे लेकिन नैतिक मूल्यों के अभाव के कारण ही परिवार में दरार पड़ती है और पूरा परिवार बिखर जाता है।अशिष्टता व्यक्ति को पूरी तरह से अनैतिक बना देती है। मानव के व्यवहार को पूरी तरह से बदल देती है तो मानवीय मूल्य भी दूर हो जाते हैं। ऐसे में जीवन का मायने ही बदल जाता है। मानव के जीवन में शिष्टाचार न हो तो उसका कोई मतलब ही नहीं रह जाता। शिष्टता से हम दूसरे को प्रभावित ही नहीं करते उसके दिल में जगह बना लेते हैं। जब शिष्ट होंगे तो नैतिक भी होंगे। जब व्यक्ति अशिष्ट होता है तो वह सामाजिक संस्कार पारिवारिक संस्कार के विरुद्ध आचरण करता है।कहीं समाज बदलते परिवेश में ऐसे अशिष्ट आचरण को स्वीकार करता है।जो सत्य बोलता है उसे बेवकूफ समझा जाता है,जो जितना झूठ बोलता है उसे उतना चालक या स्मार्ट समझा जाता है,बाद में इस प्रकार के चरित्र वाले व्यक्ति समाज के लिए राष्ट्र के लिए सम्पूर्ण मानवता के लिए घातक सिद्ध होते है। शिष्टता हमारे भावों को विचारों को व्यवहारों को संयमित करती है अशिष्टता हमारे भावों को विचारों को उच्च खला बनाती है,जो हमें अनाचार के लिए प्रेरित करती है।खुलापन का मतलब विचारों की उदारता होनी चाहिए न कि प्रतिष्ठापित संस्कारों के विरुद्ध आचरण। आज परिवार अलग हो रहे है कहीं न कहीं हमारा अशिष्ट आचरण इसकी जड़ों में है।अशिष्टता वह बीमारी है जो कई प्रकार की बीमारियों को आमंत्रित करता है ।अशिष्टता अहंकार से जुड़ा है,अहंकार हमें सीखने की प्रेरणा नहीं देता है।अहंकार सत्य के सूर्य पर लगा ग्रहण होता है,जो वास्तविकता से हमें दूर रखता है। ‘श्रद्धावान लभ्यते ज्ञानम्’, सीखने के लिए श्रद्धा,आस्था,विन्रमता की आवश्यकता होती है।अशिष्ट व्यवहार हमारे विचारो को उथला कर देती है,ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार बरसाती नदी अपना सारा पानी गहरे समुद्र में उड़ेल देती है। शिष्टता हमें समुद्र की तरह धीर और गम्भीर बनाती है।
हमारे समाज में यदि चारों ओर अज्ञान, अविवेक, कुसंस्कार, अन्धविश्वास, अनैतिकता, अशिष्टता का वातावरण फैला रहेगा तो उसका प्रभाव हमारे अपने ऊपर न सही तो अपने परिवार के अल्प विकसित लोगों पर अवश्य पड़ेगा। जिस स्कूल के बच्चे गंदी गालियां देते हैं, उसमें पढ़ने जाने पर हमारा बच्चा भी गालियां देना सीखकर आएगा। गंदे गीत, गंदे फिल्म, गंदे प्रदर्शन, गंदी पुस्तकें, गंदे चित्र कितने असंख्य अबोध मस्तिष्कों पर अपना प्रभाव डालते हैं और उन्हें कितना गंदा बना देते हैं। इसे हम प्रत्यक्ष अपनी आंखों से देख सकते हैं। अशिष्टता का तात्पर्य है, शिष्टता का अभाव। शिष्टता का अर्थ है, सभ्य आचरण। सभ्य व्यवहार। जो व्यक्ति जितना सभ्य होता है, उसमें उतने ही अच्छे गुण होते हैं। वे सभी का सम्मान करते हैं, सभी के प्रति उसके दिल में आदर के भाव होता है। वह नियमों के पालन के प्रति भी पूर्ण समर्पित होता है। वह कभी झूठ नहीं बोलता है। कभी चोरी नहीं करता है। कोई गलत आचरण नहीं करता है। इसके विपरीत, जो व्यक्ति अशिष्ट होता है, वह कभी किसी का सम्मान नहीं करता उसे लगता है कि वही सर्वोपरि है। जो वह करता है, सब सही है। इसी कारण वह दूसरों को नीचा दिखाने का भी कोई अवसर नहीं छोड़ता है। 
इस संदर्भ में मैं पौराणिक कथा की चर्चा करना चाहूँगा।प्रह्लालद अपने समय का सबसे बड़ा प्रतापी राजा था।इसने नैतिकता का सहारा लेकर इंद्र का राज्य ले लिया।इंद्र ने ब्राह्मण का रूप धारण करके प्रहलाद के पास जाकर पूछा आपका तीनों लोक का राज्य कैसे मिला?प्रहलाद ने इसका कारण नैतिकता (शील) को बताया।इंद्र की सेवा से प्रसन्न होकर प्रहलाद ने इंद्र से वर मांगने के लिए कहा।इंद्र ने नैतिकता मांग ली। वचन से बंधे होने के कारण प्रहलाद को नैतिकता देनी पड़ी।शील के जाते ही धर्म,सत्य, सदाचार,बल,धन,ऐश्वर्य चला गया।शील के धागे से ही धर्म,सदाचार बंधा होता है।  समय काल देश पात्र परिस्थिति के अनुसार मानव समाज ने कुछ नीति तय की,वही नीति नैतिक मूल्यों में बदला । नैतिकता के बल पर ही संस्कृति और समाज टिका होता है।नैतिकता ही मनुष्य को मनुष्य बनाती है ,सच बोलना ,चोरी न करना,अहिंसा दूसरे के प्रति उदारता,शिष्टता,विन्रमता इमानदरी आदि नैतिक गुण है। प्रश्न यह है कि जब मनुष्य चाहे किसी भी अवस्था का क्यों न हो वह धृष्टता करता है नैतिक मूल्यों की सीमा का उल्लंघन करने के लिए वह अशिष्टता है।जब विन्रम उदण्डता में बदल जाए सम्मान का स्थान उपमान ले ले। बड़े-बुजुर्ग, को नजरअंदाज करने की प्रवृति हो जाए इससे व्यवहार प्रभावित होता है। इस प्रकार अशिष्टता अनैतिक कार्य के सम्बल प्रदान करता है।मानवीय मूल्यों को पहचानने की क्षमता खत्म हो जाती है।हमारा अशिष्ट व्यवहार सदाचार को कदाचार में बदल देता है।सत्य से असत्य की तरफ  खींचता है।संस्कार को कुसंस्कार में बदल देता है।धीरे धीरे अशिष्ट व्यवहार ही मनुष्य का आचरण हो जाता है। बाल्यावस्था में ही अशिष्टता का बीजारोपण होता है।किसी बच्चे के अशिष्ट व्यवहार के नजर अंदाज किया जाता है तो उसका मनोबल बढ़ता है।उसे मर्यादा तोड़ने में बड़प्पन का एहसास होता है सदाचार कदाचार में बदल जाता है,ईमानदारी बेईमानी में परिणत हो जाता है। यदि भारतीय परंपरा को देखा जाए तो उससे यह बात स्पष्ट परिलक्षित होती है,जब लोग देवासुर संग्राम की बात करते है तो यह संग्राम भी नैतिकता अनैतिकता का संग्राम है।कोई राक्षस की प्रजाति नहीं होती थी,अशिष्ट व्यवहार ही मर्यादा को लांघने का बल प्रदान करती है।वेद ज्ञान उत्तम कुल पाया फिर भी रावण असुर कहलाया है।रावण का जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ,रावण महाविद्वान था परंतु उसके अशिष्ट व्यवहार ने उसे दानव बना दिया।हिरणकश्यप राक्षस था परंतु उसका बेटा प्रहलाद महामानव कैसे हो गया? हिरणकश्यप के दंभी व्यवहार ने उसे राक्षस बनाया जबकि उसके बेटे का शील स्वभाव महामानव बनाया।
नैतिकता का मतलब नैतिक मूल्य, जो भारतीय संस्कृति की पहचान, पुरखों की विरासत में मिली अनमोल धरोहर है। संपूर्ण विश्व में भारत की पहचान का प्रतीक नैतिकता, आज हमारी नई पीढ़ी, जिसमें मैं भी आता हूं, इस बेशकीमती धरोहर को खोती जा रही है। युवाओं की अशिष्टता जैसे कि उनका रुष्ट व्यवहार, बड़ों के प्रति अनादर, कुतर्क, मनमानी, यह सब दर्शाती है कि बच्चों का नैतिक स्तर कितना गिर चुका है। इसे दूर करने का उपाय सिर्फ एक ही है कि गुरुजन अपने बच्चों को पूरा समय दें और संस्कारों को बढ़ावा दें, जिससे नैतिक स्तर ऊंचा उठ सके।  अशिष्टता को बर्दाश करने वाले कहीं न कहीं अशिष्ट व्यवहार करने वाले से अधिक जिम्मेदार है,जिन्होंने अशिष्टता बर्दाशत किया और अधिक अशिष्ट व्यवहार के लिए प्रेरित किया।अशिष्टता की शुरुआत परिवार की मर्यादा तोड़कर,ट्रेफिक लाईट के सिग्नल से गुजरकर राष्ट्रद्रोह तक जाता है। समाज में पनपने वाली दुष्प्रवृत्तियों को रोकना केवल सरकार का ही काम नहीं है, वरन उसका पूरा उत्तरदायित्व सभ्य नागरिकों पर है। प्रबुद्ध और मनस्वी लोग जिस बुराई के विरुद्ध आवाज उठाते हैं, वह आज नहीं तो कल मिटकर रहती हैं।

प्रभात मिश्र

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