Monday, October 9, 2023

जो साथ न मेरा दे पाए, उनसे कब सूनी हुई डगर?

मृत्यु सत्य है ये जानते हुये भी हर व्यक्ति यहॉं रहने का पुरा व्यवस्था कर रहा है। कुछ चीजें सच में भगवान करते है श्रेय हमें मिल जाता है। मेरे मां - पिता को कैंसर था मौत कैंसर से हुई। एक कैंसर घर तोड़ देता है यहां दोनों को हो गया। बिमारी किसे हो, नहीं कहा जा सकता। दुर्गापूजा के समय ही मां को कैंसर हुआ है ये पता चला। पूजा को लेकर जितनी अच्छी स्मृतियाँ थी धूमिल हो गयी। पूजा के समय रोड़ बजार भरा-भरा रहता हो लेकिन अस्पताल खाली रहता है। प्रायः सभी डाक्टर घुमने बाहर चले जाते है। कोई अच्छा डाक्टर नहीं मिला। मां की परेशानी बढ़ती जा रही थी लेकिन हिम्मती थी। जो मेरी मां से मिले होंगे उसके हिम्मतीपन को जानते होंगे। कैंसर जैसे बड़ी बिमारी भी हमलोगों से छुपा कर रखी थी। खुद डाक्टर के पास जाती टेस्ट कराती और हमें कुछ नहीं बताती। मां को कैंसर है ये बात डायग्नोस्टिक सेंटर वाले एक मित्र ने बताया या बुरी तरह से फटकारते हुये कहा कि इतना व्यस्त हो कि मां को कैंसर है और उनके साथ कोई आता भी नहीं है।ये शब्द सुनने के बाद रोम रोम कांप गया। घर गया रिपोर्ट देखने लगा मां समझ गयी और रोने लगी। कैंसर उसका हिम्मत नहीं तोड़ पाया लेकिन संतान को तकलीफ होगा, यह बात उसे अंदर से तोड़ दिया। पिता के बिमारी और पैसे खर्च को जानती थी। उसका कष्ट बिमारी नहीं था उसको तकलीफ इस बात का था कि मेरे वजह से मेरे बच्चों को तकलीफ होगा। टाटा मेडिकल में भर्ती कराया गया नहीं बच पायी। तीन दिन में ही मर गयी। बहुत तकलीफ नहीं दी मरते हुये भी बचा गयी। टाटा से ही सफर शुरू हुआ। मां के मरने के बाद भी टाटा से रिश्ता रहा। भगवान ने निमित्त बना लिया मुझे.... इस बार भी कैंसर के लिये हमें बड़ा मदद मिला है और हम टाटा के साथ मिलकर मरीजों के लिये कुछ कर पायेंगे। भगवान को धन्यवाद.... इस लायक बनाने के लिये। मां के समय मेडिकल प्रबंधन को यह बात अच्छी लगी थी कि आपके साथ इतने लोग है। वो लोग आज भी है..... समाज में हम गिलहरी प्रयास कर रहें है.....दुख बीत जाने के बाद लोग समान्य जीवन में रम जाते है। उन्हें दूसरे के दुख से कोई लेना-देना नहीं रहता। 

धन की भाषा कल भी नहीं समझ पाता और आज भी नहीं। इसलिए बहुत जगह अनफिट हो जाता हूँ। अब लगता है कि प्रभु ने दुख नहीं दिया बल्कि हिम्मती बनाया है।

पूरे घटना क्रम को जब जब सोचता हू शिवमंगल सिंह की कविता याद आती है...... 

जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला,


उस-उस राही को धन्यवाद।

जीवन अस्थिर अनजाने ही, हो जाता पथ पर मेल कहीं,
सीमित पग-डग, लम्बी मंज़िल, तय कर लेना कुछ खेल नहीं।
दाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते, सम्मुख चलता पथ का प्रमाद
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला,
उस-उस राही को धन्यवाद।

साँसों पर अवलम्बित काया, जब चलते-चलते चूर हुई,
दो स्नेह-शब्द मिल गए, मिली नव स्फूर्ति, थकावट दूर हुई।
पथ के पहचाने छूट गए, पर साथ-साथ चल रही याद 
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला,
उस-उस राही को धन्यवाद।

जो साथ न मेरा दे पाए, उनसे कब सूनी हुई डगर?
मैं भी न चलूँ यदि तो भी क्या, राही मर लेकिन राह अमर।
इस पथ पर वे ही चलते हैं, जो चलने का पा गए स्वाद 
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला,
उस-उस राही को धन्यवाद।

कैसे चल पाता यदि न मिला होता मुझको आकुल अन्तर?
कैसे चल पाता यदि मिलते, चिर-तृप्ति अमरता-पूर्ण प्रहर।
आभारी हूँ मैं उन सबका, दे गए व्यथा का जो प्रसाद 
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला,
उस-उस राही को धन्यवाद।

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