Tuesday, October 4, 2016

मानो या ना मानो: सरकारी स्कूल प्राइवेट से ज्यादा खर्चा करते हैं

एक लाख पचासी हज़ार करोड़ रुपये। इतना खर्च होता है हर साल भारत में सिर्फ प्राइमरी शिक्षा पर। इसका ज्यादातर भाग अकेले शिक्षकों की तनख्वाह में जाता है फिर भी सरकारी स्कूलों में बच्चों की पढ़ाई का स्तर नहीं सुधर रहा।

देशभर में सरकारी स्कूल, निजी स्कूलों के मुकाबले 50,000 करोड़ रुपए सालाना ज्यादा खर्चते हैं।

यदि देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) यानि कुल खर्च के अनुपात में देखें तो प्राथमिक शिक्षा पर जीडीपी का 2.5 प्रतिशत यानि लगभग एक लाख पचासी हज़ार करोड़ रुपये खर्च होता है।

कुल 2.5 प्रतिशत के खर्च में से 1.75 प्रतिशत हिस्सा सरकारी और 0.71 प्रतिशत हिस्सा निजी स्कूलों पर खर्च होता है।

सरकारी स्कूल प्रति बच्चा, निजी स्कूलों से ज्यादा खर्चते हैं

प्राथमिक स्कूलों में प्रति बच्चा खर्च भी निजी स्कूलों से बहुत ज्यादा होता है। यदि कुछ राज्यों का उदाहरण देखें तो अंतर पता चलता है:

राजस्थान में टीचरों की सैलरी पर सबसे ज्यादा खर्चा

देश के लगभग सभी राज्यों में प्राथमिक शिक्षा पर जितना भी खर्च होता है उसमें से आधे से ज्यादा हिस्सा केवल शिक्षकों की सैलरी देने में खर्च हो जाता है।

फिर भी सरकारी स्कूलों के बच्चों का ज्ञान निजी स्कूलों से कम

आंकड़ों के अनुसार सरकारी स्कूलों के 22 प्रतिशत बच्चे ही भाग के सवाल हल कर सकते हैं, जबकि निजी स्कूलों में 32 प्रतिशत बच्चे भाग के सवाल कर सकते हैं।

इसी तरह सरकारी स्कूलों के महज़ 43 प्रतिशत बच्चे ही कक्षा दो की किताब पढ़ सकते हैं, जबकि निजी स्कूलों में ऐसा कर पाने में सक्षम बच्चों का आंकड़ा 53 प्रतिशत तक है।

शिक्षकों की जिम्मेदारी तय करने की ज़रूरत

शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था एकाउंटेबिलिटी इनिशिएटिव के अनुसार इतने ज्यादा खर्च के बाद और ज्यादातर शिक्षकों पर ही खर्च करने के बाद ज़रूरत इस बात की है कि शिक्षा स्तर के लिए टीचरों की जिम्मेदारी तय की जाए।

यदि ऐसा न हुआ तो वर्तमान स्थिति को देखते हुए अगर सरकारी स्कूलों में बच्चों की पढ़ाई का स्तर निजी स्कूलों जितना लाने के लिए दो लाख 32 हज़ार करोड़ रुपए खर्च करना पड़ेगा।

नोट- सभी आंकड़े 'एकाउंटेबिलिटी इनिशिएटिव' नामक संस्था से लिए गए हैं।

Monday, October 3, 2016

हिंदी के 10 बेहतरीन कवि

यूं तो हिंदी साहित्य में कविता लिखने वाले अनगिनत सितारे रहे हैं जिनकी कलम ने हर दौर में हिंदी को एक से बढ़कर एक बेहतरीन रचनाएं दी। कविता हिंदी साहित्य की वो विधा है जो खूबसूरत से खूबसूरत विचार को कम शब्दों में कहना जानती है। ‘गांव कनेक्शन’ की साथी अनुलता राज नायर ने कोशिश की है ऐसी ही 10 बेहतरीन शख्सियतों को याद करने की, जिनकी कविताओं को साहित्य संसार सदियों तक याद रखेगा।

1. माखनलाल चतुर्वेदी

हिन्दी साहित्य को जोशो-ख़रोश से भरी आसान भाषा में कवितायें देने वाले माखनलाल चतुर्वेदी जी का जन्म मध्यप्रदेश के होशंगाबाद ज़िले में चार अप्रैल 1889 को हुआ था। वो कवि होने के साथ-साथ पत्रकार भी थे| उन्होंने ‘प्रभा, कर्मवीर और प्रतापका सफल संपादन किया। 1943 में उन्हें उनकी रचना ‘हिम किरीटिनी’ के लिए उस समय का हिंदी साहित्य का सबसे बड़ा पुरस्कार ‘देव पुरस्कार’ दिया गया था। हिम तरंगिनी के लिए उन्हें 1954 में पहले साहित्य अकादमी अवार्ड से नवाज़ा गया। राजभाषा संविधान संशोधन विधेयक के विरोध में पद्मभूषण की उपाधी लौटाने वाले कवि ने 30 जनवरी 1968 को आख़िरी सांस ली।

2. मैथिलीशरण गुप्त

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त 1886 में यूपी के झांसी ज़िले में चिरगाओं में हुआ था। उन्होंने अपनी कविताओं में खड़ी बोली का खूब इस्तेमाल किया। उनका महाकाव्य साकेत हिन्दी साहित्य के लिए एक मील का पत्थर है। जयद्रथ वध, भारत-भरती, यशोधरा उनकी मशहूर रचनाएं हैं। पद्मविभूषण सम्मान से नवाज़े इस कवि ने 12 दिसंबर 1964 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

3. हरिवंशराय बच्चन

आधुनिक छायावाद के कवियों में सबसे आगे हरिवंश राय बच्चन का नाम आता है। इनका जन्म 27 नवम्बर 1907 को इलाहाबाद में हुआ था। उनकी लिखी मधुशाला का नशा आज भी लोगों के सर चढ़ कर बोलता है। बच्चन अपना परिचय इस तरह दिया करते थे-

मिट्टी का तन, मस्ती का मन, क्षण भर जीवन, मेरा परिचय....


हरिवंश राय बच्चन

भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के पद पर रहते हुए उन्होंने ओथेलो, मैकबेथ, रुबाइयाँ, भगवत गीता और यीट्स की कविताओं का अनुवाद किया। उनकी चार हिस्सों में लिखी गयी आत्मकथा - क्या भूलूँ क्या याद करूँ, नीड़ का निर्माण फिर, बसेरे से दूर, दशद्वार से सोपान तक, उनकी शानदार रचनाओं में गिनी जाती हैं। साहित्य अकादमीसोवियत लैंड नेहरु पुरस्कारपद्मभूषण से नवाज़े इस बेहतरीन कवि की 18 जनवरी 2003 को मृत्यु हो गयी।

4. महादेवी वर्मा

सन 1907 में फ़र्रुखाबाद यूपी में जन्मीं महादेवी वर्मा को छायावाद के प्रमुख कवियों में गिना जाता है। वे तकरीबन सारी उम्र प्रयाग महिला विद्यापीठ में पढ़ाती रहीं। आधुनिक मीरा के नाम से मशहूर महादेवी की कुछ ख़ास रचनाएँ हैं - दीपशिखा, हिमालय, नीरजा, निहार, रश्मि गीत। उनकी कविताओं की एक शानदार किताब यामा को ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाज़ा गया था। महादेवी बौद्ध धर्म से भी प्रभावित थीं। उन्होंने आज़ादी की लड़ाई में भी हिस्सा लिया। 11 सितम्बर 1987 को इलाहाबाद में उन्होंने आख़री सांस ली।

5. सुमित्रानंदन पंत

हिंदी साहित्य में छायावाद के चार स्तंभों में से एक सुमित्रानंदन पंत जी का जन्म 20 मई 1900 में हुआ था। झरने, बर्फ, फूल, भौंरे और वादियों वाले खूबसूरत कुमांउ, अल्मोड़ा में जन्म लेने की वजह से उनकी रचनाओं में प्रकृति और उससे जुड़ी खूबसूरत बातों का बखूबी ज़िक्र हुआ है। कुछ समय श्री अरबिंदो के सानिध्य में रहने से उनकी कुछ कविताओं में दार्शनिकता भी झलकती है। 1961 में उन्हें पद्मभूषण और 1968 में “चितंबरा” के लिए ज्ञानपीठ से नवाज़ा गया। उनके लिखे पल्लव, वीणा, ग्रंथि, गुंजन को खूब शोहरत मिली। उन्हें “काला और बुरा चाँद” के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला। 28 दिसंबर 1977 को वो दुनिया से रुख़्सत हो गए।

6. जयशंकर प्रसाद

निराला, पंत, महादेवी के साथ जयशंकर प्रसाद भी हिंदी साहित्य के छायावाद के चौथे स्तंभ माने जाते हैं। ये 30 जनवरी 1989 में उत्तरप्रदेश के वाराणसी में पैदा हुए। इन्होंने साहित्य को इबादत समझा और इन्हे हिन्दी के अलावा संस्कृत उर्दू और फ़ारसी का भी ज्ञान था। प्रसाद ने रूमानी से लेकर देशभक्ति तक की कवितायें लिखीं। इनकी सबसे ज़बरदस्त रचना है ‘कामायनी’। 48 साल की उम्र में ही 14 जनवरी 1937 को बीमारी के बाद इनकी मौत हो गयी।

7. सूर्यकांत त्रिपाठी

इनकी पैदाइश मिदनापुर बंगाल में 16 फरवरी 1896 को हुई। बंगाल में परवरिश होने की वजह से ये रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद और टैगोर से प्रभावित रहे। इनकी रचनायें कल्पनाओं की जगह ज़मीनी हकीक़त को दिखाती हैं। शुरू में ये बंगाली में लिखते रहे मगर बाद में इलाहाबाद आये और हिंदी में लिखना शुरू किया। सरोज शक्ति, कुकुरमुत्ता, राम की शक्ति पूजा, परिमल, अनामिका इनकी ख़ास रचनाएं हैं। इन्होंने बांगला से हिंदी अनुवाद भी खूब किया है। 15 अक्टूबर 1961 को इन्होने आख़री सांस ली।

8. रामधारी सिंह दिनकर

23 सितम्बर 1908, सिमरिया बिहार में जन्में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर को वीर रस का सर्वश्रेष्ठ कवि माना जाता है, जिसका सबूत है उनका लिखा- ‘कुरुक्षेत्र’ लेकिन उनकी रचना ‘उर्वशी’ जिसे ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला है, प्रेम और आपसी संबंधों पर रची गयी है। पद्मविभूषण दिनकर की और शानदार रचनाएं हैं – परशुराम की प्रतीक्षा, संस्कृति के चार अध्याय। देश की पहली संसद में उन्हें राज्यसभा सदस्य चुना गया था, फिर वे दो बार और मनोनीत हुए। 24 April, 1974 को उनकी मृत्यु हुई।

9. अब्दुल रहीम ख़ान-ए-ख़ाना

अब्दुल रहीम ख़ान-ए-ख़ाना को आमतौर पर ‘रहीम’ के नाम से ही जाना जाता है। 17 दिसम्बर 1556 याने मुग़ल काल में पाकिस्तान में रहीम का जन्म हुआ। आप अकबर के दरबार के नौं रत्नों में एक थे। रहीम अवधी और बृज दोनों भाषा में लिखते थे। उनकी रचनाओं में कई रस मिलते हैं। उनके लिखे दोहे, सोरठे और छंदबेहद मशहूर हैं। रहीम मुसलमान थे और कृष्ण भक्त भी। रहीम नेबाबर की आत्मकथा का फ़ारसी में अनुवाद भी किया था। 1627 में रहीम इस दुनिया को छोड़ गए

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय। टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥


रहीम

10. कबीर

हिन्दी भाषा के लेखन में निर्गुण भक्ति आन्दोलन की शुरुआत करने वाले संत कबीर का जन्म 1440 ईस्वी में हुआ था। माना जाता कि उनका जन्म काशी में हुआ

काशी में परगट भये,रामानंद चेताये


कबीर

कबीर ने एकदम सरल और सहज शब्दों में राम और रहीम के एक होने की बात कही। उन्होंने कबीर पंथ चलाया। कबीर ने साखियाँ, शबद और रमैनी भी लिखी। साखी में शिक्षाप्रद बातें हैं, शबदसंगीतमय है, प्रेम से भरी इन रचनाओं को आज भी गाया जाता है।रमैनी में दार्शनिक विचार हैं| कबीर जुलाहे का काम करते थे, वो लिखना नहीं जानते थे। माना जाता है कि वो बस कहते जाते और शिष्य लिखते रहे। माया मरी ना मन मरा, मर-मर गए। शरीर, आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर। माना जाता है कि सन 1518 के आसपास कबीर की मृत्यु हुई|

अनुलता राज नायर लेखिका हैं, रेडियो के लिए कहानियां लिखती हैं और ‘गाँव कनेक्शन’ की साथी हैं, इनकी किताब ‘इश्क़ तुम्हे हो जाएगा’ पाठकों ने काफी पसंद की।

Sunday, October 2, 2016

साधारण कद-काठी वाले शास्त्रीजी के इरादे चट्टान की तरह थे मजबूत

 देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के गुणों के बारे में बखान करना सूरज को दीया दिखाने समान है। वह भी ऐसे समय में जब भारत-पाकिस्तान के बीच तल्ख रिश्तों में और गर्माहट आ गई है तब शास्त्री जी के बोले गए बोलों से देशवासियों को और मजबूती मिल सकती है। वे भले ही एक साधारण कद-काठी के इंसान दिखते थे मगर उनके हौसले की दीवार इतनी मजबूत थी कि बड़ी से बड़ी परेशानी भी उनके सामने घुटने टेक देती थी। यही कारण है कि जब शास्त्री जी ने कुर्सी संभाली थी तब देश को आर्थिक रूप से मजबूत करने के साथ ही उसकी सुरक्षा को भी मजबूत करने का दायित्व उन्होंने बखूबी संभाला था। ऐसे में आइए शास्त्री जी के दिए बोलों से उनके व्यक्तित्व को जानने की कोशिश करते हैं…

1. जैसा मैं दिखता हूँ उतना साधारण मैं हूँ नहीं।

2. आर्थिक मुद्दे हमारे लिए सबसे जरूरी है, जिससे हम अपने सबसे बड़े दुश्मन गरीबी और बेराजगारी से लड़ सके।

3. हमारी ताकत और मजबूती के लिए सबसे जरूरी काम है वो लोग में एकता स्थपित करना है।

4. लोगों को सच्चा लोकतंत्र और स्वराज कभी भी हिंसा और असत्य से प्राप्त नहीं हो सकता।

5. क़ानून का सम्मान किया जाना चाहिए ताकि हमारे लोकतंत्र की बुनियादी संरचना बरकरार रहे और भी मजबूती भी।

6. यदि कोई एक व्यक्ति भी ऐसा रह गया जिसे किसी रूप में अछूत कहा जाए तो भारत को अपना सिर शर्म से झुकाना पड़ेगा।

7. आज़ादी की रक्षा केवल सैनिकों का काम नहीं है। पूरे देश को मजबूत होना होगा।

8. हमारा रास्ता सीधा और स्पष्ट है। अपने देश में सबके लिए स्वतंत्रता और संपन्नता के साथ समाजवादी लोकतंत्र की स्थापना और अन्य सभी देशों के साथ विश्वशांति और मित्रता का संबंध रखना।

9. देश के प्रति निष्ठा सभी निष्ठाओं से पहले आती है और यह पूर्ण निष्ठा है क्योंकि इसमें कोई प्रतीक्षा नहीं कर सकता कि बदले में उसे क्या मिलता है।

10. हमारी ताकत और स्थिरता के लिए हमारे सामने जो ज़रूरी काम हैं उनमें लोगों में एकता और एकजुटता स्थापित करने से बढ़कर कोई काम नहीं है।

11. जो शाशन करते हैं, उन्हें देखना चाहिए कि लोग प्रशासन पर किस तरह प्रतिक्रिया करनी है। अंतत: जनता ही मुखिया होती है।

12. हम सिर्फ अपने लिए ही नहीं बल्कि समस्त विश्व के लिए शांति और शांतिपूर्ण विकास में विश्वास रखते हैं।

13. मेरी समझ से प्रशासन का मूल विचार यह है कि समाज को एकजुट रखा जाए ताकि वह विकास कर सके और अपने लक्ष्यों की तरफ बढ़ सके।

लाल बाहदुर शास्त्री:एक नेता जिसने जीवन भर पैसे नहीं कमाए

शास्त्री जी के जीवन की सादगी देश के हर नेता के लिए उदाहरण रही। उनकी ज़िन्दगी से जुड़े कई ऐसे किस्से हैं जिससे इस बात का पता चलता है कि वो देश के सर्वोच्च लोकतांत्रिक पदों में से एक पर बैठे हुए भी कितने सरल थे। आइए पढ़ते हैं शास्त्री जी के जीवन से जुड़े कुछ किस्से:

जब शास्त्री जी के बेटे बिना पूछे निकाल ले गए सरकारी कार

शास्त्री जी जब 1964 में प्रधानमंत्री बने, तब उन्हें सरकारी आवास के साथ ही इंपाला शेवरले कार मिली, जिसका उपयोग वह न के बराबर ही करते थे। वह गाड़ी किसी राजकीय अतिथि के आने पर ही निकाली जाती थी। एक बार उनके पुत्र सुनील शास्त्री किसी निजी काम के लिए इंपाला कार ले गए और वापस लाकर चुपचाप खड़ी कर दी। शास्त्री जी को जब पता चला तो उन्होंने ड्राइवर को बुलाकर पूछा कि कितने किलोमीटर गाड़ी चलाई गई ? और जब ड्राइवर ने बताया कि चौदह किलोमीटर, तो उन्होंने निर्देश दिया कि लिख दो, चौदह किलोमीटर प्राइवेट यूज। शास्त्री जी यहीं नहीं रुके बल्कि उन्होंने अपनी पत्नी को बुलाकर निर्देश दिया कि उनके निजी सचिव से कह कर वह सात पैसे प्रति किलोमीटर की दर से सरकारी कोष में पैसे जमा करवा दें।

एक बार शास्त्री जी रेल कोच में कूलर लगाने पर भड़क उठे, मथुरा स्टेशन पर कूलर हटवाकर ही माने

शास्त्री जी खुद कष्ट उठाकर दूसरों को सुखी देखने वाले लोगों में से थे, एक बार जब शास्त्री जी रेल मंत्री थे और बम्‍बई जा रहे थे। उनके लिए प्रथम श्रेणी का डिब्बा लगा था। गाड़ी चलने पर शास्त्री जी बोले- डिब्बे में काफ़ी ठंडक है, वैसे बाहर गर्मी है। उनके पीए कैलाश बाबू ने कहा- जी, इसमें कूलर लग गया है। शास्त्री जी ने पैनी निगाह से उन्हें देखा और आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछा- कूलर लग गया है?… बिना मुझे बताए? आप लोग कोई काम करने से पहले मुझसे पूछते क्यों नहीं? क्या और सारे लोग जो गाड़ी में चल रहे हैं, उन्हें गरमी नहीं लगती होगी?

शास्त्रीजी ने कहा- कायदा तो यह है कि मुझे भी थर्ड क्लास में चलना चाहिए, लेकिन उतना तो नहीं हो सकता, पर जितना हो सकता है उतना तो करना चाहिए। उन्होंने आगे कहा- बड़ा गलत काम हुआ है। आगे गाड़ी जहाँ भी रुके, पहले कूलर निकलवाइए।

मथुरा स्टेशन पर गाड़ी रुकी और कूलर निकलवाने के बाद ही गाड़ी आगे बढ़ी। आज भी फर्स्ट क्लास के उस डिब्बे में जहां कूलर लगा था, लकड़ी जड़ी है।

अपने फटे कुर्ते पर शास्त्री जी बोले, “ये खादी का कुर्ता बीनने वालों ने बड़ी मेहनत से बनाया है”

एक बार शास्त्री जी की अलमारी साफ़ की गई और उसमें से अनेक फटे पुराने कुर्ते निकाल दिये गए। लेकिन शास्त्री जी ने वे कुर्ते वापस मांगे और कहा- अब नवम्बर आयेगा, जाड़े के दिन होंगे, तब ये सब काम आयेंगे। ऊपर से कोट पहन लूंगा न।

शास्त्री जी का खादी के प्रति प्रेम ही था कि उन्होंने फटे पुराने समझ हटा दिये गए कुर्तों को सहेजते हुए कहा- ये सब खादी के कपड़े हैं। बड़ी मेहनत से बनाए हैं बीनने वालों ने। इसका एक-एक सूत काम आना चाहिए।

जब पत्नी ने कहा कि गुज़ारा 40 रु में ही हो रहा है ...

आज़ादी से पहले की बात है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लाला लाजपतराय ने सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी की स्थापना की थी जिसका उद्देश्य गरीब पृष्ठभूमि से आने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाना था।

आर्थिक सहायता पाने वालों में लाल बहादुर शास्त्री भी थे। उनको घर का खर्चा चलाने के लिए सोसाइटी की तरफ से 50 रुपए हर महीने दिए जाते थे। एक बार उन्होंने जेल से अपनी पत्नी ललिता को पत्र लिखकर पूछा कि क्या उन्हें ये 50 रुपए समय से मिल रहे हैं और क्या ये घर का खर्च चलाने के लिए पर्याप्त हैं ?

ललिता शास्त्री ने जवाब दिया कि- ये राशि उनके लिए काफी है। वो तो सिर्फ 40 रुपये ख़र्च कर रही हैं और हर महीने 10 रुपये बचा रही हैं। लाल बहादुर शास्त्री ने तुरंत सर्वेंट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी को पत्र लिखकर कहा कि- उनके परिवार का गुज़ारा 40 रुपये में हो जा रहा है, इसलिए उनकी आर्थिक सहायता घटाकर 40 रुपए कर दी जाए और बाकी के 10 रुपए किसी और जरूरतमंद को दे दिए जाएं।

एक बार शास्त्री जी दुकानदार से बोले कि सबसे सस्ती साड़ी दिखाओ

एक बार शास्त्री जी कपड़े की एक दुकान में साडि़यां खरीदने गए। दुकान का मालिक शास्त्री जी को देख कर बहुत खुश हो गया। उसने उनके आने को अपना सौभाग्य माना और उनका स्वागत-सत्कार किया। शास्त्री जी ने उससे कहा कि वे जल्दी में हैं और उन्हें चार-पांच साड़ियां चाहिए। दुकान का मैनेजर शास्त्री जी को एक से बढ़कर एक साड़ियां दिखाने लगा। सभी साड़ियां काफी कीमती थीं। शास्त्री जी बोले- भाई, मुझे इतनी महंगी साड़ियां नहीं चाहिए। कम कीमत वाली दिखाओ।

इस पर मैनेजर ने कहा- सर… आप इन्हें अपना ही समझिए, दाम की तो कोई बात ही नहीं है। यह तो हम सबका सौभाग्य है कि आप पधारे। शास्त्री जी उसका मतलब समझ गए। उन्होंने कहा- मैं तो दाम देकर ही लूंगा। मैं जो तुम से कह रहा हूं उस पर ध्यान दो और मुझे कम कीमत की साडि़यां ही दिखाओ और उनकी कीमत बताते जाओ। तब मैनेजर ने शास्त्री जी को थोड़ी सस्ती साडि़यां दिखानी शुरू कीं। शास्त्री जी ने कहा- ये भी मेरे लिए महंगी ही हैं। और कम कीमत की दिखाओ।

मैनेजर को एकदम सस्ती साड़ी दिखाने में संकोच हो रहा था। शास्त्री जी इसे भांप गए। उन्होंने कहा- दुकान में जो सबसे सस्ती साडि़यां हों, वो दिखाओ। मुझे वही चाहिए। आखिरकार मैनेजर ने उनके मनमुताबिक साडि़यां निकालीं। शास्त्री जी ने उनमें से कुछ चुन लीं और उनकी कीमत अदा कर चले गए। उनके जाने के बाद बड़ी देर तक दुकान के कर्मचारी और वहां मौजूद कुछ ग्राहक शास्त्री जी की सादगी की चर्चा करते रहे।

Saturday, October 1, 2016

भारत के सबसे ईमानदार और कर्मठ प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री के जन्म दिवस की शुभकामनाएं...

भारत के सबसे ईमानदार और कर्मठ प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री के जन्म दिवस की शुभकामनाएं... 

 
जिन्हें सबसे ज्यादा याद करना चाहिए उन्हें ये देश भूल जाता है
और 'थोंपे गए देश के कथित बाप' का गुणगान करता है...
शास्त्री जी की ईमानदारी की मिसाल भारतीय राजनीति में कहीं नही है.. जब उनका देहांत हुआ तो वो अपने सर पर कर्जा छोड़ कर गए थे, कार ऋण.. उस कार का कर्जा जो उन्होंने खरीदी थी...
वो अपनी सच्चाई, आदर्शों और सिद्धांतों के लिए जीए और देश के लिए मरे...
माँ भारती के इस सपूत को मैं शत शत नमन करता हूँ...

लालबहादुर शास्त्री स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे... शारीरिक कद में छोटे वह अपार साहस और इच्छाशक्ति के इंसान थे.. सरलता, सादगी और ईमानदारी के साथ अपने जीवन का नेतृत्व किया और सभी देशवासियों के लिए एक महान प्रेरणा स्रोत बने...

उत्तर प्रदेश में वाराणसी से सात मील की दूरी पर स्थित मुगलसराय में 2 अक्तूबर 1904 को लाल बहादुर का जन्म हुआ.. उनके पिता शारदा प्रसाद श्रीवास्तव एक अध्यापक थे जो बाद में इलाहबाद में राजस्व विभाग में क्लर्क बने.. लाल बहादुर जब तीन माह के थे तो गंगा के घाट पे अपनी माँ के हाथों से फिसलकर एक ग्वाले की टोकरी में जा गिरे.. ग्वाला जिसके कोई संतान नहीं थी उन्हें भगवान् का उपहार समझकर अपने घर ले गया.. लाल बहादुर के माता-पिता ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई और पुलिस ने उन्हें ढूंढकर उनके माता-पिता को सौंप दिया... जब वह डेढ़ साल के थे तो उनके पिता का देहांत हो गया..

लाल बहादुर शास्त्री के बचपन की एक बहुत प्रसिद्ध घटना है-  लाल बहादुर अपने दोस्तों के साथ स्कूल से घर लौट रहे थे, रास्ते में एक बाग था.. लाल बहादुर पेड़  के नीचे खड़े थे और उनके दोस्त पेड़ पर आम तोड़ने के लिए चढ़ गए... इस बीच माली आया और लाल बहादुर को पकड़ लिया... उसने लाल बहादुर को डांटा और पिटाई करनी शुरू कर दी.. माली से डर कर लाल बहादुर ने कहा कि वह अनाथ है.. लालबहादुर पर दया करते हुए, माली ने कहा, "क्योंकि तुम एक अनाथ हो तो यह तुम्हारे लिए सबसे अधिक जरूरी है कि तुम अच्छा व्यवहार करना सीखो." इन शब्दों ने लाल बहादुर शास्त्री पर एक गहरी छाप छोड़ी और उन्होंने भविष्य में बेहतर व्यवहार करने की कसम खाई..
जब वह दस साल के थे तो छठी कक्षा उत्तीर्ण की
और फिर आगे की पढाई के लिए वाराणसी गए..
 
एक बार लाल बहादुर अपने दोस्तों के साथ गंगा नदी के पार मेला देखने गए.. शाम को वापस लौटते समय जब सभी दोस्त नदी किनारे पहुंचे तो उन्होंने नाव के किराये के लिए जेब में हाथ डाला.. जेब में एक पाई भी नहीं थी.. वह वहीँ रुक गए और अपने दोस्तों से कहा कि वह और थोड़ी देर मेला देखेंगे.. वह नहीं चाहते थे कि उन्हें अपने दोस्तों से नाव का किराया लेना पड़े, उनका स्वाभिमान उन्हें इसकी अनुमति नहीं दे रहा था..
उनके दोस्त नाव में बैठकर नदी पार चले गए..  जब उनकी नाव आँखों से ओझल हो गई तब लाल बहादुर ने अपने कपड़े उतारकर उन्हें सर पर लपेट लिया और नदी में उतर गए.. उस समय नदी उफान पर थी, बड़े-से-बड़ा तैराक भी आधे मील चौड़े पाट को पार करने की हिम्मत नहीं कर सकता था.. पास खड़े मल्लाहों ने भी उनको रोकने की कोशिश की मगर उन्होंने किसी की न सुनी और किसी भी खतरे की परवाह न करते हुए वह नदी में तैरने लगे... पानी का बहाव तेज़ था और नदी भी काफी गहरी थी.. रास्ते में एक नाव वाले ने उन्हें अपनी नाव में सवार होने के लिए कहा लेकिन वह  रुके नहीं, तैरते गए.. कुछ देर बाद वह सकुशल दूसरी ओर पहुँच गए...
 
हालांकि उनके माता पिता श्री शारदा प्रसाद और श्रीमती रामदुलारी देवी 'श्रीवास्तव' थे, मगर शास्त्री जी ने अपने प्रारंभिक वर्षों में अपनी जाति पहचान को छोड़ दिया.
1921 में, बाल गंगाधर तिलक और गांधी से प्रेरित होकर भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के लिए उन्होंने कुछ समय के लिए पढाई छोड़ दी.. असहयोग आन्दोलन में लाल बहादुर गिरफ्तार हुए लेकिन कम उम्र होने के कारण छोड़ दिए गये...
बाद में वह काशी विद्यापीठ में शामिल हो गए और दर्शन शास्त्र में डिग्री प्राप्त करके 'शास्त्री' की उपाधि प्राप्त की...
काशी विद्या पीठ छोड़ने के बाद लाल बहादुर शास्त्री, लाला लाजपत राय द्वारा 1921 में स्थापित 'The Servants Of The People Society' में शामिल हो गए. सोसायटी का उद्देश्य था कि देश की सेवा में अपने जीवन को समर्पित करने के लिए तैयार युवकों को प्रशिक्षित करना..
1927 में लाल बहादुर शास्त्री ने ललिता देवी से शादी कर ली...
विवाह समारोह बहुत सरल था और शास्त्री जी ने दहेज में केवल एक चरखा और कुछ गज खादी ली थी...
1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में लाल बहादुर शास्त्री शामिल हो गए और लोगों को सरकार को भू - राजस्व और करों का भुगतान नहीं करने के लिए प्रोत्साहित किया... उन्होंने गिरफ्तार किया गया और ढाई साल के लिए जेल में डाल दिया.. जेल में शास्त्री जी का पश्चिमी दार्शनिकों, क्रांतिकारियों और समाज सुधारकों से परिचय हुआ...
लाल बहादुर शास्त्री में आत्म सम्मान बहुत था.. जब वह जेल में थे तो उनकी बेटियों में से एक गंभीर रूप से बीमार हो गयी.. जेल अधिकारियों ने उनकी थोड़े समय की रिहाई के लिए शर्त रखी कि वह इस अवधि के दौरान आजादी के आंदोलन में हिस्सा नहीं लेंगे, ये लिखित रूप में सहमती होनी चाहिए.. लालबहादुर भी जेल से अपनी अस्थायी रिहाई के दौरान स्वतंत्रता आंदोलन में भाग नहीं लेना चाहते थे.. लेकिन उन्होंने कहा कि वो यह लिखित में नहीं देंगे... उन्होंने सोचा कि लिखित सहमती देना उनके आत्म सम्मान के खिलाफ था..

स्वतंत्रता की मांग के लिए कांग्रेस ने 1940 में "व्यक्तिगत सत्याग्रह" शुरू किया..  लाल बहादुर शास्त्री व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान गिरफ्तार किया गए थे और एक वर्ष के बाद रिहा हुए... 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में शास्त्री जी ने सक्रिय भाग लिया.. वह भूमिगत हो गये थे लेकिन बाद में गिरफ्तार किये गए और अन्य प्रमुख नेताओं के साथ 1945 में रिहा हुए थे... उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत के द्वारा 1946 में प्रांतीय चुनावों के दौरान पंडित गोविंद वल्लभ पंत की विशेष प्रशंसा अर्जित की.. इस समय लाल बहादुर की प्रशासनिक क्षमता और संगठन कौशल सामने आया था... जब गोविंद वल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए तो उन्होंने अपने संसदीय सचिव के रूप में लाल बहादुर शास्त्री को नियुक्त किया... 1947 में लाल बहादुर शास्त्री, पंत मंत्रिमंडल में पुलिस और परिवहन मंत्री बने..
लाल बहादुर शास्त्री कांग्रेस पार्टी के महासचिव थे, भारत गणराज्य बनने के बाद जब पहले आम चुनाव आयोजित किए गए थे.. कांग्रेस पार्टी एक विशाल बहुमत के साथ सत्ता में आई... 1952 में जवाहर लाल नेहरू केन्द्रीय मंत्रिमंडल में रेलवे और परिवहन मंत्री के रूप में लाल बहादुर शास्त्री को नियुक्त किया... तीसरी श्रेणी के डिब्बों में यात्रियों को अधिक सुविधाएं प्रदान करने में लाल बहादुर शास्त्री के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता.. उन्होंने रेलवे में पहली और तीसरे वर्ग के बीच विशाल असमानता को कम कर दिया...

एक रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए लाल बहादुर शास्त्री ने 1956 में रेल मंत्री से इस्तीफा दे दिया... जवाहर लाल नेहरू ने शास्त्री जी को मनाने की कोशिश की, लेकिन लाल बहादुर शास्त्री ने अपने स्टैंड से हिलने से इनकार कर दिया.. और अपने इस निर्णय से लाल बहादुर शास्त्री जी ने सार्वजनिक जीवन में नैतिकता के नए मानक स्थापित किये..
अगले आम चुनाव में जब कांग्रेस सत्ता में लौट आई  तो लाल बहादुर शास्त्री परिवहन और संचार मंत्री और बाद में वाणिज्य और उद्योग मंत्री बने... गोविंद वल्लभ पंत की मौत के बाद 1961 में वह गृह मंत्री  बन गए... 1962 के भारत-चीन युद्ध में शास्त्री जी ने देश की आंतरिक सुरक्षा को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई...
1964 में जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री को सर्वसम्मति से भारत के प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया... यह एक कठिन समय था और देश को भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था... देश में भोजन की कमी थी और सुरक्षा के मोर्चे पर पाकिस्तान समस्याएं पैदा कर रहा था... 1965 में, पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया... सौम्य व्यवहार लालबहादुर शास्त्री ने सैनिकों और किसानों के उत्साह के लिए "जय जवान, जय किसान" का नारा दिया... पाकिस्तान युद्ध में हार गया और शास्त्री जी के नेतृत्व की सारी दुनिया में प्रशंसा हुई...

जनवरी 1966 में रूस के ताशकंद में, भारत और पाकिस्तान के बीच शांति के लिए रूस की मध्यस्थता में लाल बहादुर शास्त्री और अयूब खान के बीच एक बैठक हुई.. रूसी मध्यस्थता से भारत और पाकिस्तान ने संयुक्त घोषणा पर हस्ताक्षर किए... संधि के तहत भारत युद्ध के दौरान जीते हुए सभी प्रदेशों को पाकिस्तान को लौटाने पर सहमत हुआ..
10 जनवरी, 1966 को संयुक्त घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए गए और उसी रात को लाल बहादुर शास्त्री की दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई.??

1966 में शास्त्री जी को 'भारत रत्न' दिया गया...

लाल बहादुर शास्त्री की मौत का रहस्य-

आधिकारिक तौर पर शास्त्री जी की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हुई जबकि उनकी पत्नी श्रीमती ललिता शास्त्री ने यह आरोप लगाया कि उनकी मौत जहर से हुई है... कई लोगों का मानना है कि उनका शरीर नीला पड़ गया था जो विषाक्तता का प्रमाण है... वास्तव में विषाक्तता के संदेह में एक रसियन खानसामा गिरफ्तार भी किया गया था लेकिन बाद में उसे छोड़ दिया गया...
विदेश मंत्रालय ने पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत को लेकर मास्को स्थित भारतीय दूतावास के साथ पिछले 47 साल के दौरान हुए पत्र व्यवहार का यह कहते हुए खुलासा करने से इनकार कर दिया है कि इससे देश की संप्रभुता और अखंडता तथा अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
पहले विदेश मंत्रालय ने कहा था कि उसके पास ताशकंद में 1966 को हुई शास्त्री की मत्यु के संबंध में केवल एक मेडिकल रिपोर्ट को छोड़ कर कोई दस्तावेज नहीं है। यह मेडिकल रिपोर्ट उस डॉक्टर की है जिसने उनकी जांच की थी। इसके बाद विदेश मंत्रालय ने भारत और पूर्ववर्ती सोवियत संघ के बीच शास्त्री की मौत को लेकर हुए पत्र व्यवहार के बारे में चुप्पी साध ली थी।
2009 में एक पारदर्शिता संबंधी वेबसाइट डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू डॉट एंड द सीक्रेसी डॉट कॉम के संचालक और CIA's Eye On South Asia के लेखक अनुज धर ने सूचना का अधिकार के अंतर्गत दिए गए अपने आवेदन में प्रधानमन्त्री कार्यालय से शास्त्री जी की मौत के बाद विदेश मंत्रालय और मास्को स्थित भारतीय दूतावास तथा दोनों देशों के विदेश मंत्रालयों के बीच हुए पत्र व्यवहार का ब्यौरा मांगा था.. उन्होंने यह भी कहा था कि अगर कोई पत्र व्यवहार नहीं हुआ है तो इसकी भी जानकारी दी जाए..
धर ने दिवंगत प्रधानमंत्री की जांच करने वाले डॉक्टर आर एन चुग की मेडिकल रिपोर्ट भी मांगी थी जो शास्त्री जी के पोते और भाजपा प्रवक्ता सिद्धार्थ नाथ सिंह के अनुसार, सार्वजनिक संपत्ति है...
मंत्रालय ने यह नहीं कहा कि कोई पत्र व्यवहार हुआ या नहीं.. उसने जवाब दिया कि जो सूचनाएं मांगी गई हैं उन्हें सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 8 (एक) (ए) के तहत जाहिर नहीं किया जा सकता... इस धारा के तहत ऐसी सूचना के खुलासे पर रोक है जिससे देश की संप्रभुता और अखंडता पर तथा विदेश से संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो..
मंत्रालय ने इस धारा के तहत छूट मांगने का कारण नहीं बताया जबकि केंद्रीय सूचना आयोग के आदेशों के अनुसार कारण बताना आवश्यक है.. वर्ष 1965 में हुए भारत पाक युद्ध के बाद शास्त्री जी जनवरी 1966 में पूर्ववर्ती सोवियत संघ में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान के साथ एक बैठक के लिए ताशकंद गए थे। संयुक्त घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करने के कुछ ही घंटे के बाद शास्त्री जी की रहस्यमय परिस्थितियों में मत्यु हो गई थी।
सिंह ने बताया कि डाक्टर की रिपोर्ट सार्वजनिक की जा चुकी है.. मेरे पास इसकी एक प्रति है.. इसमें डाक्टर ने अंत में लिखा है -हो सकता है -इससे ऐसा लगता है कि उनकी मौत का कारण जैसे कुछ शब्दों का इस्तेमाल किया गया है जिसका मतलब दिल का दौरा हो सकता है। प्रधानमंत्री की मौत को आप इस तरह नहीं बता सकते-इसके लिए आपको 100 फीसदी निश्चित होना होगा...
धर का कहना है कि विदेश में प्रधानमंत्री की मौत से खासी हलचल हुई होगी और मास्को स्थित भारतीय दूतावास में भी गतिविधियां कम नहीं हुई होंगी.. उन्होंने कहा इस घटना को लेकर कई फोन और टेलीग्राम आए होंगे लेकिन विदेश मंत्रालय इनमें से किसी का भी खुलासा करने को तैयार नहीं है।
धर के अनुसार, पहले उन्होंने कहा कि मास्को स्थित भारतीय दूतावास में डा चुग की रिपोर्ट के अलावा कोई दस्तावेज नहीं है..
अब वे कहते हैं कि वे फोन कॉल्स और टेलीग्राम का ब्यौरा जाहिर नहीं कर सकते... 
इसका मतलब यह है कि ये रिकॉर्डस हैं लेकिन पहले कह दिया गया कि रिकार्डस नहीं हैं..

माँ भारती के लिए जीने वाले हिंसा दुश्मनों से और अहिंसा दोस्तो से करने वाले,
देश के गद्दारो को साथ ले गए थे ताशकंद, पीठ पे छुरा दोस्तो से खाने वाले...
कद छोटा था पर सीने मे दिल बड़ा था, पाकिस्तानी कुत्तो के कान खड़े करने वाले,
न भूत मे, न वर्तमान मे और न ही भविष्य मे फिर ऐसे बहादुर शहीद आने वाले...

पूरे देश को दिलाकर व्रत सोमवार का, पाकिस्तान को नानी याद दिलाने वाले,
माँ भारती के लिए जीने वाले हिंसा दुश्मनों और अहिंसा दोस्तो से करने वाले..
आंखो मे देश की स्वदेशी का ख्वाब जगाकर, अमेरिका को मुह की खिलाने वाले,
सभी पढो माँ ललीता शास्त्री की "मेरा पति मेरा देवता" पुस्तक तो,
पता चल जाएगा कौन हत्यारे इस शहीद बहादुर को धोखे से मारने वाले...

भारत माता के 'गूदड़ी के लाल' लाल बहादुर शास्त्री को सादर प्रणाम